Hindi Dalit Sahity Mei Atmkathaon ki Prasngikta (हिंदी दलित साहित्य में आत्मकथाओं की प्रासंगिकता)
Narendra Kumar (नरेंद्र कुमार)
Region : World | Language : Hindi | Product Binding : Hardbound | Page No. : 160 | Year : 2017
ISBN : 9789383723195
INR : 495.00
Overview
साहित्य और समाज का परस्पर सम्बन्ध है! साहित्य सामाजिक परिवर्तनों का वाहक है! समाज में जो घटित होता है साहित्यकार उसे अपनी लेखनी के माध्यम से लिपिबद्ध करते हैं! साहित्य के साथ-साथ, समय-समय पर साहित्य की अवधारणाएं और परिभाषाएं भी बदलती हैं! आज दलित साहित्य विमर्श का महत्वपूर्ण छेत्र है! आत्मकथाएं भी विशेष रूप से दलित आत्मकथाएं चर्चा का विषय बानी हुई हैं! लेकिन आज हिंदी दलित साहित्य में आत्मकथाओं की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए जा रहे हैं एवं उनका साहित्यिक पहलुओं से परीक्षण कर उनमें अनुभव और प्रस्तुति के स्तर पर कमियें गिनाई जाने लगी हैं! इसी को ध्यान में रख कर प्रस्तुत पुस्तक में दलित साहित्यकारों द्वारा लिखी जा रही आत्मकथाओं को अध्ययन का विषय बनाया गया है और दलित आत्मकथाओं की वर्तमान अर्थव्यवस्था को परखने का प्रयास किया गया है!
प्रस्तुत पुस्तक को सात अध्यायों में विभाजित किया गया है - हिंदी दलित साहित्य: स्वरुप और विकास; चयनित हिंदी दलित आत्मकथाएं: संक्षिप्त परिचय; सामाजिक संरचना की दृष्टि से, आर्थिक प्रदर्शय के सन्दर्भ में, धार्मिक परिस्थितियां तथा राजनैतिक परिपेक्ष्य में दलित आत्मकथाओं की प्रासंगिकता एवं हिंदी दलित साहित्य की भाषा और शैली को विवेचित किया गया है!
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डॉ. नरेंद्र कुमार संत ने दिल्ली विश्विद्यालय के महाराजा अग्रसेन कॉलेज में प्रशासनिक पद पर रहते हुए एमए (हिंदी) तथा डॉ. के.एन. मोदी यूनिवर्सिटी, निवाई, (राजस्थान) से दलित साहित्य में पीएचडी की! महाराजा अग्रसेन कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर (तदर्थ) पद पर अध्यापन के बाद वर्तमान में दिल्ली विश्विद्यालय के ही नॉन कॉलेजिएट फॉर वीमेन एजुकेशन में अध्यापन कार्य में व्यस्त हैं! समय-समय उनके पत्र-पत्रिकाओं में आपके सम-सामायिक लेख प्रकाशित हो रहे हैं!

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