Paid Media (पेड मीडिया)
₹695.00
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ISBN | 9788197890550 |
Description
पेड मीडिया पुस्तक में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सामने आ रही चुनौतियों परविमर्श किया गया है। भारत में मीडिया समूहों के मुनाफे और अन्य कारोबारी हितोंपर लंबे समय से बहस हो रही है। मुनाफे के खेल और दूसरे कारोबारी हितों नेजहां मीडिया क्षेत्र में कुछ बड़े कारपोरेट समूहों और सरकार के नियंत्रण को बढायाहै, वहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भारी नुकसान पहुंचाया है। इक्कीसवीं सदी केपहले दो दशकों में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता केलिए पेड मीडिया एक चुनौती बनकर सामने आया। मीडिया के संपादकीय विभागकी आजादी लगभग खत्म हो गई। कुछ बड़े कारोबारी समूहों का मीडिया क्षेत्र मेंएकाधिकार बढने के कारण खबरों की बहुलता पर भारी असर पड़ा। देश की बड़ीआबादी की समस्याएं खबरों से गायब हो गई। मीडिया समूहों की खबरों ने समाजमें तनाव पैदा किया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की निष्पक्षता कोबचाए रखने में नियामक संस्थाएं विफल रहीं। पेड मीडिया पुस्तक में इन तमाममुद्दों पर चर्चा की गई है।
संजीव पांडेय का जन्म बिहार के बोधगया में हुआ। इलाहबाद विश्वविद्यालय सेबी.ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ से हिंदी, प्राचीनइतिहास और गांधी अध्य्यन विषयों में एम.ए. किया। पंजाब विश्वविद्यालय केगांधी अध्य्यन विभाग से एम.फिल. की डिग्री भी हासिल की। अमर उजाला,चंडीगढ़ में लंबे समय तक बतौर सीनियर रिपोर्टर काम किया और वर्तमान मेंस्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं। मीडिया के क्षेत्र में पेड न्यूज के मुद्दे को लेकर चलरहे अभियान में सक्रिय रहे। लेखक की इक्कीसवीं सदी में दक्षिण एशिया नामकपुस्तक पहले प्रकाशित हो चुकी हैं।
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