Astitvaad Mai Algav Ki Dharna

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ISBN 9789350024638
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ISBN 9789350024638

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मनुष्य सचेतन कर्ता के बतौर अन्य प्राणियों से अपने आप को प्रकृति के साथ सचेतन और सोद्देश्य अंतःक्रिया के जरिए अलगाता है। वह समूची दुनिया को अपने क्रिया-कलाप का विषय बना लेता है। इस तरह वह बाहरी और भीतरी प्रकृति को रूपान्तरित करता है, उस पर नियंत्रण पाता है। फलस्वरूप वह अपने लिए स्वतंत्रता का क्षेत्र निर्मित करता है। मनुष्य एक वस्तुनिष्ठ प्राणी है और कर्ता का वस्तूकरण दरअसल उसके अस्तित्व का आत्म-साक्षात्कार है। मार्क्स का यह भी कहना है कि यदि मनुष्य प्रकृति से, समाज से और अपने आप से अलगाव में है तो उसका कारण श्रम विभाजन और वर्ग विभाजित समाज में मेहनतकशों के श्रम फल का, उन पर प्रभुत्व जमाए बैठे वर्ग द्वारा, अधिग्रहण है। मनुष्य की सृजनात्मक गतिविधि उसके सामाजिक अस्तित्व का निर्माण करती है और जब मनुष्य के सृजनात्मक उत्पाद को दूसरा कोई हड़प लेता है तो वह प्रकृति (उत्पाद) से, समाज से और अपने आप से अलग हो जाता है। मनुष्य केवल तभी अलगाव पर विजय पा सकता है और अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त कर सकता है, जब श्रम के अलगाव की इन सभी समाजैतिहासिक परिस्थितियों का वस्तुगत रूप से अतिक्रमण हो जाए।” -इसी पुस्तक से

गोरख पांडेय का जन्म 1945 में देवरिया जिले के गांव पंडित का मुंडरेवा में हुआ था! इस लिहाज से अगर वे आज जीवित रहते तो उनकी उम्र सत्तर साल से अधिक होती! ज्ञान की प्रचंड पिपासा उनके भीतर बचपन से ही थी! सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्विद्यालय वाराणसी से संस्कृत की पारंपरिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद कशी हिन्दू विश्विद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि ग्रहण की! इसी पिपासा से उन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय दिल्ली में रहते हुए उन्होंने कुल 45 वर्ष की उम्र में हिंदी कविता में प्रमुख जगह बनाई! जन संस्कृति मंच के वे संस्थापक महासचिव रहे! 1989 में स्किजोफ्रेनिया से तंग आकर उन्होंने आत्मघात कर लिया!

समाज-विज्ञान और साहित्यिक कृतियों के सिद्धहस्त अनुवादक गोपाल प्रधान हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक हैं। छायावाद और हिन्दी नवरत्न पर उनकी पुस्तकें प्रकाशित हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में साहित्य-समाज से जुड़े विषयों पर गंभीर लेखन के लिए जाने जाते हैं। फिलहाल दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में अध्यापन।

युवा आलोचक अवधेश ने आजादी के बाद की हिन्दी कविता और गोरख पाण्डेय की कविताओं पर काम किया है। हाल ही में जीएन देवी की किताब ‘आफ्टर एमनेशिया’ का अनुवाद प्रकाशित। फिलहाल दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में अध्यापन।

अनुवादक, कवि, आलोचक मृत्युंजय का काम हिन्दी आलोचना में कैनन निर्माण पर है। मल्लिकार्जुन मंसूर की आत्मकथा का अनुवाद एक कविता संग्रह ‘स्याह हाशिये’ प्रकाशित। फिलहाल दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में अध्यापन।

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