Nehru aur Adhunikta

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ISBN 9789350024294
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ISBN 9789350024294

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स्वतंत्र भारत केसन्दर्भ में होनेवाली महत्वपूर्ण बहसों के केंद्र में जवाहरलाल नेहरू रहे हैंI इनमें एक मुख्य बहस परंपरावाद बनाम आधुनिकता है I ‘परंपरावादी’ नेहरू को भारत का सबसे बड़ा विरोधी करार देते हैं, क्योंकि नेहरू की ज्ञान-मीमांसा का केंद्र ‘पश्चिम’ थाI बहस का दूसरा छोर ‘आधुनिकता’ से संबंधित हैI इस सन्दर्भ में ‘पुनरुत्थानवादी’ भारतीयता को आधुनिकता से ऊपर बताते हैं I कभी-कभार यह भी घोषित कर दिया जाता है कि आधुनिकता भारत की प्राचीन धरोहर है I ‘वर्तमान आधुनिकता’ पश्चिमी है, इसलिए इसको अस्वीकार करने का समय आ गया है I परंपरावादी (जिनको राजनैतिक सिद्धांत में ‘समुदायवादी’ कहते हैं) नेहरू को ‘परंपरा-विरोधी’ के नाम पर ख़ारिज करते हैं, वहीं पुनरुत्थानवादी नेहरू को ‘भारतीय’ श्रेष्ठता के नाम पर ख़ारिज करते हैं I

इन दोनों विमर्शों के मध्य दो प्रश्न उठते हैं I पहला, क्या समुदायवादियों और पुनरुत्थानवादियों द्वारानेहरु को दी गयी चुनौतियोंका गंभीर जवाब दिया गया है ? इसकाउत्तर ‘नहीं’ ही है I इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण नेहरू को राजनैतिक सिद्धांतकार के तौर पर ‘न’ देखनेका रहा है I नेहरू को ‘व्यक्ति’ या ‘कर्ता’ के तौर पर ही देखा गया है I यह प्रयास नेहरूको राजनैतिक सिद्धांतकार के तौर पर देखने से है I दूसरा सवाल यह भी उठता है कि क्या नेहरू के पास समुदायवादियों और पुनरुत्थानवादियों से बेहतर विकल्प है? अगर है तो क्या है ?

‘नेहरू और आधुनिकता’ इन्हीं सभी प्रश्नों को समझने का साझा प्रयास है I

संपादक-परिचय

धनंजय राय, सेंटर फॉर स्टडीज एंड रिसर्च इन गांधियन थॉट एंड पीस, स्कूल ऑफ़ सोशल साइंसेज, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैंI उनकी प्रकाशित पुस्तकें डेमोक्रेसी ऑन द मूव : रिफ्लेक्शन ऑन मोमेंट्स, प्रोमिसेस एंड कंट्राडिक्शन (सहसंपादित) (2013), कंटेम्पररी पॉलिटिकल थ्योरी: ए क्रिटिकल एनालिसिस(2013) और स्वातन्त्र्योत्तर भारतीय राजनीति(संपादित) (2016)हैं

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