Raahon Ki Dhul

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ISBN 9789350023471
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ISBN 9789350023471

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राहों की धूल मई मार्च 1947 से दिसंबर, 1949 तक लिखी कवितायेँ है. यही तीन साल इन कविताओं के सन्दर्भ थे, जिसमे शामिल थी हिंदुस्तान की फसादों भरी, पंजाब और देश की बांटती, देशी बुर्जुआ-सामंती राज स्तापित करती, आज़ादी, और हर जगह संघर्षशील लोगो का उत्साह बढ़ाता, अंतराष्ट्रीय इंक़लाब की दिशा दिखलाता माओ का चीनी इंक़लाब. पर जो बात उभर कर सामने आयी, वह देश के नए हकीमों का जनविरोधी वर्ग-चरित था, जब उन्होंने आज़ादी के वक़्त के जान-उभर को सख्ती से दबा दिया और जनता द्वारा आज़ादी को अपने हक़ों के लिए ढालने की हर कोशिश को, तेलंगाना समेत हर संघर्ष को, अपने क़ानूनी और शास्त्र ताकत के बल पर कुचल डाला. बाद के सालों में सभी पात्र बदल गए, और हालात भी वही नहीं रहे, पर यह कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है, वैसी ही चल रही है. इसीलिए राहों की धूल आज के सन्दर्भ में अपनी प्रासंगगिकता बनाये हुए है.

रनधी सिंह (9 जनुअरी 1922 – 31 जनुअरी 16) दिल्ली विश्विद्यालय मई पोलिटिकल थ्योरी के प्रोफेसर थे. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है मार्क्सिस्म, सोशलिज्म, इंडियन पॉलिटिक्स: आ व्यू फ्रॉम थे लेफ्ट; सरिसी ऑफ़ सोशलिज्म: नोट्स इन डिफेंस ऑफ आ कमिटमेंट; रीज़न, रेवोलुशन एंड पोलिटिकल थ्योरी; फाइव लेक्टर्स इन मार्क्सिस्ट मोड और ऑफ़ मार्क्सिस्म एंड पोलटिक्स. वह 1939 से कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े हुए थे.

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