Gaon Chodab Nahi: Odisha Ke Visthapan-Virodhi Jan Aandolano Ki Gaathayein

695.00

Additional information

Author

Format

Language

Pages

Publisher

Year Published

ISBN 9789350027851

Description

उड़ीसा में बड़े बांधों, खनन और औधोगिक परियोजनाओं के चलते होने वाले विस्थापन और बेदखली के खिलाफ लोगों के प्रतिरोध के इर्द-गिर्द बनी गयी यह पुस्तक, राजनितिक और सामाजिक आख्यानों को बयान करती है! बेदखली की यह गाथा आम किसानों, वनवासिओं, मछुआरों और भूमिहीन मजदूरों की कहानियों और आख्यानों से भरी है, जो प्रतिरोध की इतिहास के कैनवास को और अधिक सम्पूर्ण बनती है! व तटीय मैदानों के साथ-साथ दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम उड़ीसा के पहाड़ी व वन छेत्रों में रहते हैं! लेखकों ने इस पुस्तक में १९५० के दशक में हीराकुंड बांध के निर्माण से लेकर समकालीन समय में पोस्को और वेदांत जैसे निगमों के प्रवेश तक के विकास पथ का वर्णन किया है! इस प्रकार यह पुस्तक स्वतंत्र भारत के बाद से १९९० के दशक की शुरुआत में नव-उदारीकरण के मद्देनज़र प्रदेश में किए जा रहे औधोगिकरण की प्रकृति पर सवालिया निशान लगाने के साथ-साथ इस के व्यापक आधार को भी शामिल करती है! यहां दर्शाया गया है की कैसे और क्यों उड़ीसा जैसे एक बेहद गरीब प्रदेश में लोग इस तरह के प्रलयकारी विकास का विरोध करते हैं! इस जटिल वास्तविकता को उजागर करने में पुस्तक समाज के एक विषाल वर्ग के वैश्विक दृष्टोकोण को दर्शाती है जिसका जीवन और आजीविका-भूमि जंगलों पहाड़ों समुद्रों नदियों झीलों तालाबों और झाडिओं से जुड़ा है! उड़ीसा के सन्दर्भ में ये गाथाएं प्रतिरोध साहित्य में विशाल खाई को भर्ती हैं! यह पुस्तक भारत और दुनियाभर में प्रतिरोध की राजनीती और सामाजिक आंदोलनों के मानचित्र पर उड़ीसा को लाने का एक प्रयास है!

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Gaon Chodab Nahi: Odisha Ke Visthapan-Virodhi Jan Aandolano Ki Gaathayein”