Marx ke Aakhiri Din

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ISBN 9789350027196
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ISBN 9789350027196

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अपने जीवन के आखिरी सालों में मार्क्स ने अपना शोध नये क्षेत्रों में विस्तारित किया – ताजातरीन मानव शास्त्रीय खोजों का अध्ययन किया, पूंजीवाद से पहले के समाजों में स्वामित्व के सामुदायिक रूपों का विश्लेषण किया, रूस के क्रांतिकारी आंदोलन का समर्थन किया तथा भारत, आयरलैंड, अल्जीरिया और मिस्र के औपनिवेशिक शोषण की आलोचना की। 1881 से 1883 के बीच वे यूरोप से बाहर पहली और आखिरी यात्रा पर भी गये । उनके जीवन के इन अंतिम दिनों पर केंद्रित इस किताब में दो गलत धारणाओं का खंडन हुआ है कि मार्क्स ने अंतिम दिनों में लिखना बंद कर दिया था और कि वे यूरोप केंद्रित ऐसे आर्थिक चिंतक थे जो वर्ग संघर्ष के अतिरिक्त किसी अन्य चीज पर ध्यान नहीं देते थे।

इस किताब के जरिए मार्चेलो मुस्तो ने मार्क्स के इस दौर के काम की नयी प्रासंगिकता खोजी हैं और अंग्रेजी में अनुपलब्ध उनकी अप्रकाशित या उपेक्षित रचनाओं को उजागर किया है ताकि पाठक यूरोपीय उपनिवेशवाद की मार्क्स आलोचना को, पश्चिमेतर समाज के बारे में उनके विचारों को और गैर पूंजीवादी देशों में क्रांति की सम्भावना संबंधी सिद्धांतों को समझें । अंतिम दिनों की उनकी पांडुलिपियों, नोटबुकों और पत्रों के जरिए मार्क्स की ऐसी तस्वीर उभरती है जो उनके समकालीन आलोचकों और अनुयायियों द्वारा प्रस्तुत छवि से अलग है । इस समय मार्क्स की लोकप्रियता बढ़ी है इसलिए उनके जीवन और उनकी धारणाओं के मामले में कुछ नयी बातें इसमें हैं।

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