Rashtrvaad aur Arthik Vikas

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ISBN 9789350025826
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295.00

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ISBN 9789350025826

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यह किताब राष्ट्रवाद, आर्थिक विकास और लोकतंत्र पर पुनर्विचार के सूत्र पेश करती है. राष्ट्रवाद के नाम पर फैलाई जा रही बहुसंख्यकवादी सोच और सोच विचार के अन्य तमाम तरीकों को बहिष्कृत करने की कवायद कोई अचानक नहीं उभर आयी है. गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस दरअसल बहुसंख्यकवादी राष्ट्रीय आंदोलन बन गयी थी. वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों को जगह देने का कोई तरीका नहीं ढूंढ पाई, मान लिया गया कि अन्य सामाजिक मसलों को हल करने के साथ ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव को भी ऊँची आर्थिक बढ़त अपने आप मिटा देगी. ऐसा हुआ नहीं है!

अमित भादुड़ी जाने मने अर्थशास्त्र हैं. उनकी किताबें एशिया और यूरोप की कई भाषाओँ में अनुदित हो चुकी हैं. वे दिल्ली के जवाहरलाल विष्वविधालय में प्रोफेसर एमेरिटस और इटली के पौविया विष्वविधालय में अंतर्राष्द्रीय स्टार पर चुने गए ‘प्रोफेसर ऑफ क्लियर फेम’ हैं. उन्हें ‘आर्थिक चिंतन की सरहदों का विस्तार’ करने के लिए 2016 में अमेरिका के टफ्ट्स विष्वविधालय द्वारा लियोंटिफ पुररस्कार से सम्मानित किया गया.

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