Aadhunik Europe Ka Itihaas 1453-1945

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ISBN 9788191038231
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ISBN 9788191038231

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यूरोप धरातल पर सदियों से संचित होरही मध्यकालीन धार्मिक, समाजिव एवं आर्थिक निर्योग्यताओं से बौद्धिक प्रगति और सामाजिक विकास बाधित हो रहे थे! मध्यकालीन इन विषंगतियों के विरोध में वैचारिक एवं मूलयपरक आंदोलनों का अवतरण हुआ! पुनर्जागरण एवं धर्मसुधार प्रतिस्पर्धी स्त्रोत होते हुए भी एक ही मूल से उत्पन्न हुए थे, उनकी प्रतिस्पर्धा एक दूसरे की पूरक थी! पोप तथा कैथोलिक चर्च के प्रति विद्रोह की भावना तो पहले से हवा में थी, प्रोटोस्टेंट क्रांति कैथोलिक धर्मसुधार व धर्म के रूढ़िवादी शिकंजे का ढीला पड़ना इसी का प्रतिफल था! तत्कालीन मनुष्य, जीवन को व्यर्थ के धार्मिक पूर्वग्रहों से कुण्ठित नहीं करना चाहता था, वह अनुसंधानों पर आधारित ज्ञान का पुजारी था, वह नैतिक जीवन की ऐसी परिभाषा देना चाहता था जिसमें व्यक्ति की अस्मिता सुरक्षित हो और जो प्रकृति के निकट एवं सहज हो! आर्थिक, राजनितिक एवं राष्ट्रीयता के प्रश्नों की तुलना में धार्मिक प्रश्न महत्वहीन होते गये! आर्थिक एवं वैज्ञानिक परिवर्तनों के परिणाम स्वरुप कृषि प्रधान सामंती व्यवस्था का औचित्य व्यतीत होता जा रहा था! निरंकुशता व शोषण को नियंत्रित करने के प्रयासों में इंग्लैंड में गौरवशाली क्रांति, अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम तथा फ़्रांसीसी क्रांति जैसी महत्वपूर्ण घटनाओ का जन्म हुआ! निरंकुशता को घृणित कृत्य मान लिया गया! राष्ट्रीयता के आधार पर इटली तथा जर्मनी जैसे राष्ट्र-राज्यों का निर्माण हुआ! उग्र राष्ट्रीयता, औपनिवेशिक साम्राजयवाद, आदि ने विनाशकारी महायुद्धों को जन्म दिया! ऐसे भयावह महायुद्धों की पुनरावृत्ति न हो, अंतर्राष्ट्रीयता की भावना जाने और आपसी सामंजस्य बना रहे, आदि मकसद से संयुक्त राष्ट्रसंघ का सृजन किया गया!

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