TRISHANKU KI SHANKA AUR SAMKALIN BHARAT, 1950-2023 (त्रिशंकु की शंका और समकालीन भारत, 1950-2023)

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ISBN 9789350028780
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‘त्रिशंकु की शंका’ विरोधाभासों से भरे समाज और राष्ट्र का एक उत्तेजक विवरण प्रस्तुत करती है जिसमें दैनंदिन प्राप्त होनेवाले सामाजिक और राजनीतिक अनुभवों को अकादमिक अंतर्दृष्टि के साथ सहज रूप में रखा गया है। इसमें त्रिशंकु नामक एक धर्मपरायण राजा की पौराणिक कथा का प्रयोग एक रूपक के रूप में किया गया है जो संभवत: अभी भी स्वर्ग और पृथ्वी के बीच में लटका हुआ है। वह हमारे जीवन में व्यक्तिगत रूप से और नागरिक के रूप में हम सभी के सामने आने वाली दुविधाओं की विभिन्न बारीकियों को प्रतिबिंबित करता है।ऐतिहासिक आंकड़ों और समाजशास्त्रियों द्वारा ‘ सहभागी अवलोकन’ कहलाने वाले तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत यह लेख स्वतंत्र भारत की कठिनाइयों और संघर्षों पर प्रकाश डालता है। यह एक मुफस्सिल कस्बाई जीवन के चित्रण से शुरू होता है और जाति, धर्म, भ्रष्टाचार, शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति तथा अन्य बहुत से मुद्दों की बारीकी से जांच करता है।असाधारण ओजस्विता और वाक्पटुता के साथ प्रस्तुत तथा ऐतिहासिक और व्यक्तिगत अनुभवों के अवलोकन पर आधारित इस पुस्तक की ‘गूंज’ समकालीन भारतीय जीवन की परतों को उजागर करने में मदद करती है।

दीपक कुमार ने एक शोधकर्ता और शिक्षक दोनों के रूप में लगभग पांच दशकों तक विज्ञान के इतिहास, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और चिकित्साशास्त्र के विषयों को सामान्य भाषा में प्रस्तुत करते हुए इन्हें लोकप्रिय बनाया है। वे अपनी पुस्तकों ‘विज्ञान और भारत में अंग्रेजी राज’ (ग्रंथशिल्पी, 1998),‘प्रौद्योगिकी और अंग्रेजी राज ‘ ( ग्रंथशिल्पी, 2000), ‘आतम खबर: संस्कृति, समाज और हम’ (आकार बुक्स, 2022), (सं.) ‘टेक्नोलोजी एंड द राज’ (आकार बुक्स, 2022), ‘साइंस एंड सोसाइटी इन मॉडर्न इंडिया’ (कैंब्रिज, 2023), ‘कल्चर ऑफ साइंस एंड द मेकिंग ऑफ मॉडर्न इंडिया’ (प्राइमस बुक्स, 2023 ) के लिए जाने जाते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने चिकित्सा-शास्त्र के इतिहास, पर्यावरण के इतिहास और शिक्षा के इतिहास पर कुछ पुस्तकों का भी सह-संपादन किया है। वे कलकत्ता के ‘सोसाइटी फॉर द हिस्ट्री ऑफ साइंस’ के सह-संस्थापक अध्यक्ष हैं और उन्हें हैदराबाद के ‘मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी’ में मानद प्रोफेसर का पद प्राप्त है।

गणपत तेली ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली से भाषा विवाद की राजनीति और इतिहास पर शोध किया है। राष्ट्रवाद, संचार माध्यम और भाषा पुस्तक के अलावा इनके कई लेख और अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। फिलहाल जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली में हिंदी अध्यापन कर रहे हैं।

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