MANAVADHIKAR DARSHAN KE VIMARSH

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ISBN 9789383723942
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ISBN 9789383723942

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‘मानवाधिकार के दर्शन पर संवाद’अधिकारों के नियामक दर्शन, अंतर्विषयक पहलुओं, निश्चित अर्थों एवं मूलभूत विषयों पर आधारित प्रबंधों के सृजन का एक प्रयास है। इन अवधारणाओं के जरिए मौलिक दर्शन, मूल्यों, चिंतकों की भूमिका, उनकी विचारधारा,महत्त्वपूर्ण घटनाओं, विषयों, विकल्पों एवं अनिवार्यताओं को एक सकारात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है।

यह पुस्तक मानवाधिकारों के दर्शन पर आधारित ‘स्वयं के नैतिक मूल्यांकन’ के लिए एक प्रकार का प्रयोगात्मक उद्यम है। इसमें सरल/जटिल शब्दों की मौलिक परिभाषाओं को प्रस्तुत किए जाने के साथ ही,उनमें अंतर्निहित युक्तियों की पुष्टि के लिए उन शब्दों को दोहराकर स्पष्ट किया गया है। लेखक ने अपने पाठकों को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि यहां प्रस्तुत मूल विचार, आख्यान और वाग्मिता का संयोजन मानवाधिकारों पर संवाद के लिए संवाद को सार्थक साबितकरेगा और तभी इस प्रकार इस वाद-विवाद को जीवित रखा जा सकेगा।

"यह पुस्तक मानवाधिकार एवं उससे संबंधित नियामक दर्शन के बारे में जानने की इच्छा रखनेवाले पाठकों के लिए जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत और सहायक उपकरण साबित होगी।" – प्रवीण एच. पारेख, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय (भारत) एवं अध्यक्ष, ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल लॉं’।

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